Naren's Hindi Blog

गुरुवार, सितंबर 09, 2010

!! आओ आईने ले लो !!

4th May 1999 Aravali Hostel IITD 3:00 A.M.
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!! आओ आईने ले लो !!

इत्र खाने वालों के शहर में
आईने बेचने का काम करता हूँ मैं !
क्यों बेवज़ह, व्यर्थ ही में
सबका जीना हराम करता हूँ मैं !!
यहाँ लोग आईने से कतराते हैं
क्यों अपने ही चेहरे से घबराते हैं?
अगर मनः विजय कर कोशिश करें
तो मेरा आइना सचाई दिखलाता है
बस एक नज़र चाहिए देखने के लिए !
स्वार्थ के शीशे वाले चश्मे
नज़र को धुंधला बनाते हैं
इन्हें उतार फेंको यारों और
हकीकत से मुखातिब हो लो
आओ आईने ले लो, आईने ले लो !!

अगर मैं गंजे को कंघा बेच सकता हूँ तो
तुम्हे आइना दिखा कर ही दम लूँगा
हार मान कर रुकना मैंने सीखा नहीं तो
तुम मत सोचना कि मैं रुकुंगा !!
अगर मेरे आईने तुम्हे गंदे नज़र आते हैं तो
अपने मन के दर्पण को निहारो
तुम्हे एहसास होगा कि वो
आईने वाला शायद सही था
मगर तुम हमेशा अन्दर झाँक सकते नहीं
माया को जल्दी त्याग सकते नहीं क्योंकि
जिजीविषा, भूख, बेकारी कि घनी छाया
तुम्हे बाहर आने पर मजबूर करेगी
तुम्हारे अन्दर कि नज़र को भी कमज़ोर करेगी
इसीलिए आओ प्यारों, मेरे यारों
आओ आईने ले लो, आईने ले लो !!

दुनिया को आईने में दुनिया दिखाने चला था मैं
जब खुद आइना देखा तो
मन बोला कि मुझसा बुरा न कोई .......
हलवाई भी तो खुद अपने पकवान नहीं खाता
उनका बिकना ही उसके मन को खुश कर जाता
इस रंगमंच पर मेरा पात्र तो बस इतना समझ आया कि
बड़े भाग से मानुष तन पाया और
अगर अब कुछ न कर पाया तो
सारा जीवन व्यर्थ गंवाया
जीवन के आदि के पूर्व और
अंत के पश्चात का तो, कुछ मैं जानता नहीं
मगर ओ वर्तमान में जीने वालों
अगर दूसरों कि चोट पर, दर्द तुम्हे होता है !
पराई आँखों के आंसू देख तुम्हारा मन भी रोता है
खुशियाँ लुटा के आंसू छीनने का जज्बा रखते हो तो
मुझ विक्रेता पर कुछ तरस खाओ
आओ मेरा कुछ विक्रय कराओ
आओ आईने ले लो, आईने ले लो !!
--नरेन्द्र शुक्ल