Naren's Hindi Blog

रविवार, अगस्त 28, 2005

पथ की पहचान

-- डा. हरिवंशराय बच्चन

पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले.

पुस्तकों में छापी नहीं
गयी इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी

अनगिनत राही गये
इस राह से उनका पता क्या
पर गये कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी

यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले.

पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले.

यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना

तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तूझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना

हर सफल पंथी यही
विश्वास ले आगे बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले

पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले.

है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिर गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे

किस जगह् यात्रा खत्म
हो जायेगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे

कौन सहसा छूट जायेंगे
मिलेंगे कौन सहसा
आन पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले

पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले.

रास्ते का एक काँटा
पाँव का दिल चीर देता
रक्त की दो बूँद गिरती
एक दुनिया डूब जाती

आँख में हो स्वर्ग लेकिन
पाँव धरती पर टिके हों
कँटकों की इस अनोखी
सीख का अभिमान कर ले

पूर्व चलने के बटोही
बाट की पहचान कर ले.

-डा. हरिवंशराय बच्चन