क्या लिखूँ?
पिछले दो ब्लॉग्स मे डा. हरिवंशराय बच्चन की कविताओं के बाद मैने सोचा कि अब कुछ स्वयं का भी लिख लिया जाये. मगर "क्या लिखूँ? अब मैं महान लेखक पदुमलाल पुन्नालाल बक्शीजी तो हूँ नहीं कि "क्या लिखूँ?" कहते-कहते इसी शीर्षक से एक अदभुत कृति का सृजन कर डालूँ..... इस चिट्ठा का शीर्षक तो एक प्रश्न है जो मैं स्वयं से कर रहा हूँ. चलो, फिर भी कोशिश करते हैं, कुछ लिखने की !
मुझे लगता है कि, इस सप्ताह इन्द्र देवता का शचि देवी के साथ कुछ झगड़ा चल रहा है, तभी तो वे आजकल अपने 'ऑफिस' में जल्दी आकर, क्रोध में IIT खड़गपुर और आस-पास के इलाकों पर झमाझम पानी बरसा रहे हैं. उनका यह प्रकोप अभी कुछ समय पूर्व गुजरात और महाराष्ट्र (मुख्यतः मुम्बई) के निवासियों ने भी अनुभव किया था. :-( चलिये कोशिश करते हैं, इन्द्र देव के हमारे जीवन पर प्रभाव का विश्लेषण करने की !
कल रात मेढकों का संगीतमय स्वर लोरी की भाँति सुनकर मैं किसी प्रकार सोया और जब सुबह एक मित्र की असमय फोन कॉल से जागा, तो प्राँगण का दृश्य वर्णन से परे था. वह जल मग्न छात्रावास का दृश्य और अनवरत वृष्टि मुझे अनायास ही कविवर जयशंकर प्रसाद की इन पँक्तियों का स्मरण करा गयी,
"ऊपर हिम था नीचे जल था, एक सघन था एक विरल ।
एक ही तत्व की उधर समानता, कहो उसे जड़ या चेतन ॥"
एक ही तत्व की उधर समानता, कहो उसे जड़ या चेतन ॥"
वैसे यह तो आतिशयोक्ति हो गई, क्योंकि ना तो यहाँ 'ऊपर हिम था' और ना ही 'कामायनी' की भाँति यह कोई प्रलय का दृश्य था, जिसका वर्णन प्रसाद जी की इन पँक्तियों में हुआ है. फिर भी यदि आप भारतवर्ष के उस एक-चौथाई जन समूह के दृष्टिकोण से देखें, जो आज भी गरीबी की रेखा से नीचे (BPL) है, तो आप पायेंगे कि इस प्रकार का इन्द्र देव का प्रकोप, उनके लिये यह सब कुछ, प्रलय से कुछ कम भी नहीं था. अरे ये मैंने क्या किया? कहाँ वर्षा जैसा रूमानी (romantic) मौसम, और कहाँ भारत की BPL जनता? कैसी विसंगति है? चलिये, कुछ और लिखता हूँ और फिर से सोचता हूँ कि, "क्या लिखूँ?"
आज से पहले मैं महान आर्किटेक्ट लुई काह्न (Louis I. Kahn) को भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), अहमदाबाद के मुख्य आर्किटेक्ट की तरह से ही जानता था, मगर आज उनके सुपुत्र Nathaniel Kahn द्वारा निर्देशित फिल्म My Architect: A Son's Journey को देखने के बाद उनके बहु-आयामी व्यक्तित्व की एक झलक मिली. IIT खड़गपुर के Architecture & Regional Planning विभाग द्वारा प्रदर्शित इस फिल्म के दौरान स्वयं Nathaniel Kahn और फिल्म की producer "Susan Rose Behr" भी उपस्थित थे. बाहर हो रही इन्द्र देव की जल वृष्टि के बावजूद प्रेक्षाग्रह खचाखच भरा था और फिल्म प्रदर्शन के पश्चात, Nathaniel और Susan ने दर्शकों के प्रश्नों का जवाब देकर उन्हें निराश नहीं किया. किसी दर्शक ने कहा कि यह फिल्म Ayn Rand के The Fountainhead तरह है, तो किसी ने इसे Feature-Film-cum-documentary कहा. मेरे मित्रों को भी यह फिल्म खासी अच्छी लगी. मुझे Louis Kahn के इस संवाद ने काफी प्रभावित किया,
How accidental our existences are, really, and how full of influence by circumstance. अर्थात् "वास्तव में, हमारे अस्तित्व कितने अनपेक्षित हैं और कितने परिस्थितियों से पूर्णतः प्रभावित होने वाले!"
है ना सोचने लायक बात? मगर अभी तो मैं इन्द्र देव से प्रार्थना करता हूँ कि अगली बार से पति-पत्नी के झगड़े में बेचारी BPL जनता को मत परेशान करें और फिलहाल तो ये सोचता हूँ कि,
क्या लिखूँ? :-)
-नरेन्द्र शुक्ल
5 Comments:
नरेन्द्र जी, क्या लिखूँ कहते-कहते आपने भी काफ़ी कुछ लिख दिया :)
By Pratik Pandey, at 7:44 pm, सितंबर 15, 2005
प्रतीक जी, आपको बहुत बहुत धन्यवाद !! वैसे आपका जिम का अनुभव काल्पनिक था या वास्तविक?? यदि, यह वास्तविक था, तो अभी आपके हाथों में ही बन्धी पट्टियां उतरी कि नहीं ??
By Naren, at 12:07 pm, सितंबर 17, 2005
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By Kumar Padmanabh, at 2:12 am, सितंबर 18, 2005
प्रिय शुक्ल जी,
शब्द-शब्द विक्षिप्त युवा जगत मे आपके जैसा स्प्रिट (विचार) हर कदम सराहनीय है. आप इतने समझदार तो हैं हीं की मेरे कथन का मतलब समझ जाएँ. खैर, बहुत अच्छा लगा अपका टिप्पणी मेरे चिट्ठा पर पाकर और पढकर. अन्त मे, (वस्तुतः शुरुआत मे) ही पद्मनाभ मिश्र हिन्दी चिट्ठाकरॊ की अद्भूत एवम विहंगम पटल एवम अन्तर्जाल पर अपने हृदय की गहराइयों से आपका स्वागत करता है.
कृपया इस स्थल का भी दौरा करें
http://padmanabh.blogspot.com/2005/09/blog-post_112698788767640807.html
By Kumar Padmanabh, at 2:16 am, सितंबर 18, 2005
aapki hindi to atyant spasht aur karnpriya hai. mujhe pata hi nahin tha ki office ke floor ke ek kone mein hindi ka ek atna anokha jaankaar baitha hai.
excellent i must say...
By pallavi poddar, at 1:54 pm, मार्च 28, 2008
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